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लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (20) आगे कुआँ, पीछे खायी ( मुहावरों की दुनिया )



शीर्षक = आगे कुआँ, पीछे खायी



दरवाज़े पर किसी की दस्तक होती देख, दीन दयाल जी बोले " इस समय कौन, आ सकता है? "

"मैं देखती हूँ " सुष्मा जी ने कहा


"रुको!मैं देखता हूँ" दीन दयाल जी ने कहा और दरवाज़े की तरफ बढ़ चले

अंदर से कोई आवाज़ न पाकर बाहर खड़े शख्स ने दोबारा खट खटाया


"आ रहे है भाई, थोड़ा हौसला रखो,, चल कर आ रहे है " दीन दयाल जी ने दरवाज़ा खोलते हुए कहा


सामने खड़े शख्स को देख मानो उन्हें अपनी आँखो पर यकीन ही नही हुआ और वो कुछ कहते तब ही, उनके पैर छूते हुए आशीष बोला " आशीर्वाद दीजिये पिताजी "

दीन दयाल जी तो अपने होश में ही नही थे, इतने साल बाद बेटे को देख वो कही खो गए थे


"अजी! कौन आया है, दरवाज़े पर? आप तो दरवाज़े पर ही चिपक गए है " सुष्मा जी ने कहा

दीन दयाल जी कुछ कहते तब ही आशीष अपने आने की इत्तेला देते हुए कहता है " माँ! परेशान न हो मैं आया हूँ "


आशीष की आवाज़ कानो में आती देख सुष्मा जी बाहे फैलाये दौड़ी चली आयी, राधिका और मानव के चहरे पर भी एक मुस्कान थी, बस दीन दयाल जी को यकीन नही आ रहा था


दीन दयाल जी अपने कमरे में चले गए, सुष्मा जी की तो ख़ुशी का ठिखाना ही नही था, वो तो घबरा गयी थी इतने साल बाद बेटा जो घर आया था, राधिका भी उसे वहाँ देख बहुत खुश हुयी



बाहर से आती आवाज़ दीन दयाल जी भी सुन रहे थे, उनका एक मन कर रहा था कि जाकर बेटे को गले लगा ले, लेकिन उनकी ज़िद्द उन्हें रोक रही थी ऐसा करने से उनकी अना भी बीच में आ रही थी, कि आखिर वो बेटा है और वो पिता उसे उनके पास आना चाहिए न कि उसे उनके पास आना चाहिए, और वैसे भी वो तो सब कुछ छोड़ कर गया था, अब आने का क्या मकसद, यही बाते उनके दिमाग़ में घूम रही थी


आशीष ने आराम किया नहा धोकर, गर्मी में बहुत थक गया था सवेरे ही निकल गया था इसलिए लेटते ही सो भी गया, राधिका से बाते करते करते


दोपहर में उसकी माँ ने उसके पसंद के पकवान बनाये, दोपहर के खाने पर भी बाप बेटे एक दुसरे से बिना बात चीत किये ही खाना खा कर उठ गए

और इसी तरह शाम कि चाय से लेकर रात के खाने तक बाप बेटे ने कोई ज्यादा बात चीत नही कि


आज कमरे में सिर्फ राधिका, मानव और आशीष थे वही दूसरी तरफ दीन दयाल जी और सुष्मा जी थे, दीन दयाल जी जल्दी सोने का बहाना कर करवट बदल लेते है


क्यूंकि वो जानते थे, उनकी पत्नि अपने बेटे से बोलचाल करने के लिए उन्हें प्रेरित करेंगी,

"इस तरह मुँह फेर कर, करवट बदल लेने से मसले का हल नही निकलेगा, आज बेटा घर आया है, और आपने उससे ठीक से बात तक नही कि, बहु क्या सोचेगी, आपके बारे में?" सुष्मा जी ने कहा क्यूंकि वो जानती थी की उनके पति जल्दी सोने का नाटक कर रहे है


"हर चीज का ख्याल हम ही रखे, आपके पूत को भी तो सोचना चाहिए की इतने सालों बाद घर आया है, तो दो घड़ी बैठ कर अपने बाप से माफ़ी मांग ले, उसे जो करना था उसने कर लिया, अब हम उसके साथ जबरदस्ती थोड़ी कर सकते है, वैसे कितने दिन के लिए आया है, उससे कहना ज्यादा दिन न रुके कही उसका लाखो का नुकसान हो गया तो उसकी भरपाई कौन करेगा " दीन दयाल जी ने कहा


"उफ्फ्फ, आप भी न, आप की इन्ही बातों से वो चिड जाता है, चलिए अब सो जाइये आपसे बहस करना मतलब भैंस के आगे बीन बजाने जैसा है " सुष्मा जी ने कहा



"तो मत बजाइये, कौन कह रहा है आपसे बीन बजाने को, जाकर अपने बेटे को समझाइये  वो शहर रहकर छोटे और बड़े सबका एहतराम करना भूल गया है, यहां तक की पिता का भी " दीन दयाल जी ने कहा और करवट बदल कर सो गए


सुष्मा जी कुछ कहते कहते खामोश हो जाती है, और हाथ जोड़ कर ईश्वर से प्रार्थना करती है " हे! भगवान इन बाप बेटे के बीच की लड़ाई ख़त्म करदो ताकि मेरी मामता की परीक्षा खत्म हो जाए, समझ नही आता किसका साथ दू  आगे कुआँ हे तो पीछे खायी, समझ नही आता क्या करू


वही दूसरी तरफ राधिका और मानव भी खुश थे अपने पिता को देख कर,

"और मानव बेटा, तुम्हारे स्कूल का वो प्रोजेक्ट कहा तक पंहुचा, जो तुम्हे स्कूल से मिला था, उम्मीद करता हूँ तुम्हारे दादा ने उसे पूरा करवा दिया होगा " आशीष ने कहा


"जी पापा, अभी बस थोड़े से रहते हे, ये देखिये अगला मुहावरा " आगे कुआँ, पीछे खायी " चलिए अब आप मुझे इसका मतलब समझाइये" मानव ने कहा


"बेटा मानव, पापा थके हुए हे, उन्हें आराम करने दो, सुबह बना लेना कहानी " राधिका ने कहा


"नही, नही,, इतना भी थका हुआ नही हूँ, चलो बताता हूँ, बेटा इसका मतलब होता हे, जब इंसान को दोनों तरफ से ही मुसीबत आन घेरे तब ये मुहावरा बोला जाता हे " आगे कुआँ, पीछे खायी "


अब इसको मेरी ही तरह समझलो, मेरा तुम लोगो के बिना न तो घर पर ही दिल लग रहा था और न ही अस्पताल में, मेरे लिए भी कुछ ऐसा ही था मानो मैं कुए और खायी के बीच फ़स गया हूँ

घर पर तुम लोगो का न होना मुझे परेशान कर रहा था और अस्पताल में भी मेरा मन तुम लोगो में ही था, वहाँ भी मन नही लग रहा था, इसलिए मैंने फैसला किया की अगर तुम लोग नही आ रहे हो तो मैं ही हो आउ तुम लोगो से मिलने " आशीष ने कहा


राधिका, उसे देख मुस्कुराई उसे अच्छा लगा, इस तरह आशीष का उनकी परवाह करना और सब कुछ छोड़ कर उनके पास आ जाना

मानव भी बेहद खुश था, उसने पापा को गले लगाया और उनका यहाँ आने के लिए धन्यवाद किया और फिर सो गया, राधिका और आशीष एक दुसरे को प्यार भरी नज़रो से देखते रहे


मुहावरों की दुनिया हेतु 

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2 Comments

Gunjan Kamal

09-Feb-2023 06:59 PM

👌👌👌

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शानदार

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